छाती बैठ जाता है...
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है,
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाता है,
यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे,
यही मौसम है अब सीने में सरदी बैठ जाता है,
चलो माना कि शहनाई मर्सरत की निशानी है,
मगर वह शख्*स जिसकी आ के बेटी बैठ जाता है,
बड़े बूढे कुऐं में नेकियां क्*यों फेंक आते हैं,
कुएं में छिप के आखि़र क्*यों ये नेकी बैठ जाता है,
नक़ाब उलटे हुये जब भी चमन से वह गुजरता है,
समझ् कर फूल उसके लब पर तितली बैठ जाती है,
सियासत नफ़रतों का ज़ख्*म भरने नहीं देती,
जहां भरने पे आता है तो मक्*खी बैठ जाती है,
वह दुशमन ही सही, आवाज दे उसको मुहब्*बत से,
सलीके से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती है.....
-मुनव्वर राना
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