Saturday, October 23, 2010

बुलंद आवाज़ -- इंक़लाब की शायरी-- देश रत्न की संग्राहिका

तूफ़ान कर रहा था मेरे अजम का तव्वाफ़,
दुनिया समझ रही थी कि कश्ती मेरी भंवर में है .. सय्यद हुस्सैनी

Hum Jhuk Ke Mil Rahey Hai'n Toh Kamzor Math Samajh,
Phaldaar Shaakh Ho Toh Lachakti Zaroor Hai....

कह दो खुदा से कि लंगर उठा दे
मै तूफान की जिद देखना चाहता

चमक ऐसे नही आती है, खुद्दारी कि, चेहरे पर !
अना को हम ने दो दो वक्त का फाका कराया है !!

तरदामनी पै शैख़ हमारी न जाइयो,
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें।

ना जाने किसकी दुआओं का असर है,
मैं डूब भी जाता हूँ तो दरिया उछाल देता है..

Aatish-e-barq o Sahaab paida kar
Ajal bhi kaanp utthay, wo shabaab paida kar
tu inqalaab ki aamad ka intezaar na kar
jo ho sakay, to abhi inqalaab paida kar

nahi tera nasheman qasr-e-sultani ke gumbad par
ki tu shaheen hai basera kar pahadon ki chattanooon par!

YE SAR AZEEM HAI JHUKNE KAHIN NA PAAYE 'WASEEM'
ZARA - SI JEENE KI KHWAHISH PE MAR NAHI JAANA.

bina toote koi pahad bada nahi hota,
pahad ko badhne ke liye kai baar kai jagahon se tootna padta hai..

मेरा ज़मीन गयी हैं , मेरा आसमान बाकी हैं
की टूट कर भी मेरी जान , मेरा स्वाभिमान बाकी हैं
तू कर ले गुस्ताखी मुझे नेस्तनाबूद करने की
पैदा हुएँ हैं शान से , अभी कई अरमान बाकी हैं ..

ख़िरदमन्दों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है......

यही अंदाज़ है मेरा ,समंदर फ़तह करने का ....!
मेरी कागज़ कि कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं ..

मेरी कश्ती की रवानी देखकर तूफ़ान में
पड़ गए हैं सख़्त चक्कर में भँवर अपनी जगह..

हम भी दरिया है ,हमें अपना हुनर मालूम है ....!
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे ,रास्ता हो जाएगा ..

मैं खुद ज़मीन मेरा ज़र्फ़ आसमान का है,
कि टूट कर भी मेरा हौसला चट्टान का है..

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है,
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

Raah agyaar ki dekhain yeh bhale taur nahin,
Hum Bhagat Singh ke saathi hain koi aur nahin. Zindagi humse sada shola e jawaani maange,
Ilm o hikmat ka khazana humdaani maange.
aisi lalkaar ke talwaar bhi paani maange,
aisi raftaar ke dariya bhi rawaani maange

Zindaggi se zindagi ka wasta zinda rahe,
Hum rahe jab tak hamara hosla zinda rahe.

katra katra mil jao...jo tanha tanha na beh pao... kataar ki pehli boond hoon main....saath mere tum jud jaao... ek se bane hum anek, ahista se dariya ban jao, dariya dariya beh chalo....aur samandar ban jao...

tu shaheen hai, parvaz kaam hai tera,
tere aagey aasman aur bhi hai..

हमने माना जंग कड़ी है, सर फूटेंगे खून बहेगा,
खून में ग़म भी बह जायेंगे, हम ना रहें ग़म भी न रहेगा..

हमें नफरत नहीं थी अंग्रेजों की कौमी सूरत से,
हमें नफरत थी उनके अंदाजे हुकुमत से.
अगर अपनों की हुकुमत रहबर हो नहीं सकती,
तो अपनों की सूरत से भी मोहब्बत हो नहीं सकती...

aie khakh nashino uth baitho
wo waqt kareeb aa pahuncha hai
jab takht girayenge jayenge
aur taaz uchale jayenge......

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