Wednesday, May 12, 2010
राहत इन्दोरी - Rahat Indori - Kuchh nagmen
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे
ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे
अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे
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अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
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अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
खाक मुट्ठी में उठाते थे, उड़ा देते थे
बेसमर जान के हम काट चुके हैं जिनको
याद आते हैं के बेचारे हवा देते थे
उसकी महफ़िल में वही सच था वो जो कुछ भी कहे
हम भी गूंगों की तरह हाथ उठा देते थे
अब मेरे हाल पे शर्मिंदा हुये हैं वो बुजुर्ग
जो मुझे फूलने-फलने की दुआ देते थे
अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थे
कत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे
वो हमें कोसता रहता था जमाने भर में
और हम अपना कोई शेर सुना देते थे
घर की तामीर में हम बरसों रहे हैं पागल
रोज दीवार उठाते थे, गिरा देते थे
हम भी अब झूठ की पेशानी को बोसा देंगे
तुम भी सच बोलने वालों के सज़ा देते थे
)__________
आँख प्यासी है कोई मन्ज़र दे,
इस जज़ीरे को भी समन्दर दे|
अपना चेहरा तलाश करना है,
गर नहीं आइना तो पत्थर दे|
बन्द कलियों को चाहिये शबनम,
इन चिराग़ों में रोशनी भर दे|
पत्थरों के सरों से कर्ज़ उतार,
इस सदी को कोई पयम्बर दे|
क़हक़हों में गुज़र रही है हयात,
अब किसी दिन उदास भी कर दे|
फिर न कहना के ख़ुदकुशी है गुनाह,
आज फ़ुर्सत है फ़ैसला कर दे|
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इन्तेज़मात नये सिरे से सम्भाले जायें|
जितने कमज़र्फ़ हैं महफ़िल से निकाले जायें|
मेरा घर आग की लपटों में छुपा है लेकिन,
जब मज़ा है तेरे आँगन में उजाले जायें|
ग़म सलामत है तो पीते ही रहेंगे लेकिन,
पहले मैख़ाने की हालत सम्भाले जायें|
ख़ाली वक़्तों में कहीं बैठ के रोलें यारो,
फ़ुर्सतें हैं तो समन्दर ही खगांले जायें|
ख़ाक में यूँ न मिला ज़ब्त की तौहीन न कर,
ये वो आँसू हैं जो दुनिया को बहा ले जायें|
हम भी प्यासे हैं ये एहसास तो हो साक़ी को,
ख़ाली शीशे ही हवाओं में उछाले जायें|
आओ शहर में नये दोस्त बनायें "राहत"
आस्तीनों में चलो साँप ही पाले जायें
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उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो
अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो
चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो
____
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
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कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं
मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं
जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं
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किसी आहू के लिये दूर तलक मत जाना
शाहज़ादे कहीं जंगल में भटक मत जाना
इम्तहां लेंगे यहाँ सब्र का दुनिया वाले
मेरी आँखों ! कहीं ऐसे में चलक मत जाना
जिंदा रहना है तो सड़कों पे निकलना होगा
घर के बोसीदा किवाड़ों से चिपक मत जाना
कैंचियां ढ़ूंढ़ती फिरती हैं बदन खुश्बू का
खारे सेहरा कहीं भूले से महक मत जाना
ऐ चरागों तुम्हें जलना है सहर होने तक
कहीं मुँहजोर हवाओं से चमक मत जाना
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चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|
डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|
हालाँकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया|
इस वक़्त तो मैं घर से निकलने न पाऊँगा,
बस एक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया|
झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया|
यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया
अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया|
अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,
उमरों का देव सारी तवनाई ले गया|
___________
तू शब्दों का दास रे जोगी
तेरा कहाँ विश्वास रे जोगी
इक दिन विष का प्याला पी जा
फिर न लगेगी प्यास रे जोगी
ये सांसों का का बन्दी जीवन
किसको आया रास रे जोगी
विधवा हो गई सारी नगरी
कौन चला वनवास रे जोगी
पुर आई थी मन की नदिया
बह गए सब एहसास रे जोगी
इक पल के सुख की क्या क़ीमत
दुख हैं बारह मास रे जोगी
बस्ती पीछा कब छोड़ेगी
लाख धरे सन्यास रे जोगी
__________
दिल जलाया तो अंजाम क्या हुआ मेरा
लिखा है तेज हवाओं ने मर्सिया मेरा
कहीं शरीफ नमाज़ी कहीं फ़रेबी पीर
कबीला मेरा नसब मेरा सिलसिला मेरा
किसी ने जहर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है जायका मेरा
मैं चाहता था ग़ज़ल आस्मान हो जाये
मगर ज़मीन से चिपका है काफ़िया मेरा
मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था
मुझे सुनाते रहे लोग वाकिया मेरा
उसे खबर है कि मैं हर्फ़-हर्फ़ सूरज हूँ
वो शख्स पढ़ता रहा है लिखा हुआ मेरा
जहाँ पे कुछ भी नहीं है वहाँ बहुत कुछ है
ये कायनात तो है खाली हाशिया मेरा
बुलंदियों के सफर में ये ध्यान आता है
ज़मीन देख रही होगी रास्ता मेरा
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दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं
ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं
हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं
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दोस्ती जब किसी से की जाये|
दुश्मनों की भी राय ली जाये|
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये|
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये|
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाये|
बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये|
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तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची
मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची
मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची
एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची
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पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले|
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले|
आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है,
मग़्रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले|
कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात,
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले|
मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर,
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले|
परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो,
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले|
___________
जो मंसबो के पुजारी पेहेन के आते हैं।
कुलाह तोख से भारी पेहेन के आती है।
अमीर सेहर तेरी तरह कीमती पोषक।
मेरी गली में भिखारी पेहेन के आते हैं।
यही यकिक है शाही के ताज की जीनत।
जो उँगलियों में मदारी पेहेन के आते हैं।
इबादतों की हिफाज़त बझी उनके जिम्मे हैं।
जो मस्जिदों में सफारी पेहेन के आते हैं।
___________
बीमार को मर्ज़ की दवा देनी चाहिए
वो पीना चाहता है पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सरे-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझको सजा देनी चाहिए
सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए
___________
मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार था|
देर से निकला तो मेरे रास्ते में दार था|
अपने ही फैलाओ के नशे में खोया था दरख़्त,
और हर मासूम टहनी पर फलों का भार था|
देखते ही देखते शहरों की रौनक़ बन गया,
कल यही चेहरा था जो हर आईने पे भार था|
सब के दुख सुख़ उस के चेहरे पे लिखे पाये गये,
आदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था|
अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीब,
एक ज़माना था कि जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था|
काग़ज़ों की सब सियाही बारिशों में धुल गई,
हम ने जो सोचा तेरे बारे में सब बेकार था|
__________________
मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की
दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की
अपनी साँसें बेचकर मैंने जिसे आबाद की
वो गली जन्नत तो अब भी है मगर शद्दाद की
उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर
जिंदगी को ढ़ूंढ़ने में जिंदगी बर्बाद की
दास्तानों के सभी किरदार गुम होने लगे
आज कागज़ चुनती फिरती है परी बगदाद की
इक सुलगता चीखता माहौल है और कुछ नहीं
बात करते हो यगाना किस अमीनाबाद की
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ये सानेहा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज मरने वाला था
तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़
मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख्म भरने वाला था
बुलंदियों का नशा टूट कर बिखरने लगा
मेरा जहाज़ ज़मीन पर उतरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ काट गये वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था
मेरे चिराग मेरी शब मेरी मुंडेरें हैं
मैं कब शरीर हवाओं से डरने वाला था
_________
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं
नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं
___________
शहर में ढूंढ रहा हूँ कि सहारा दे दे|
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे|
पेड़ सब नगेँ फ़क़ीरों की तरह सहमे हैं,
किस से उम्मीद ये की जाये कि साया दे दे|
वक़्त की सगँज़नी नोच गई सारे नक़श,
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे|
दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये,
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे|
मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा,
मेरी तन्हाई यहाँ कुछ दिनों पेहरा दे दे|
डूब जाना ही मुक़द्दर है तो बेहतर वरना,
तूने पतवार जो छीनी है तो तिनका दे दे|
जिस ने क़तरों का भी मोहताज किया मुझ को,
वो अगर जोश में आ जाये तो दरिया दे दे|
तुम को "राहत" की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा,
वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे|
__________
शहरों-शहरों गाँव का आँगन याद आया
झूठे दोस्त और सच्चा दुश्मन याद आया
पीली पीली फसलें देख के खेतों में
अपने घर का खाली बरतन याद आया
गिरजा में इक मोम की मरियम रखी थी
माँ की गोद में गुजरा बचपन याद आया
देख के रंगमहल की रंगीं दीवारें
मुझको अपना सूना आँगन याद आया
जंगल सर पे रख के सारा दिन भटके
रात हुई तो राज-सिंहासन याद आया
___________
सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल,
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे|
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है,
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे|
मुझे ज़मीं की गहराईयों ने दाब लिया,
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है,
मगर ये बात हमारे ही दर्मियान रहे|
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई,
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे|
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा,
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे|
_________
समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है
जहाज़ खुद नहीं चलते खुदा चलाता है
ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये
वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है
वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाजों में
मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है
ये लोग पांव नहीं जेहन से अपाहिज हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है
हम अपने बूढे चिरागों पे खूब इतराए
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है
___________
सारी बस्ती क़दमों में है, ये भी इक फ़नकारी है
वरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है
कालेज के सब लड़के चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिये
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
फूलों की ख़ुश्बू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं
ये रहजन का काम नहीं है, रहबर की मक़्क़ारीहै
हमने दो सौ साल से घर में तोते पाल के रखे हैं
मीर तक़ी के शेर सुनाना कौन बड़ी फ़नकारी है
अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है
दौलत बाज़ू हिकमत गेसू शोहरत माथा गीबत होंठ
इस औरत से बच कर रहना, ये औरत बाज़ारी है
कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना
लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी ज़िम्मेदारी है
_________
हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो|
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो|
न जाने कौन सी मज़बूरीओं का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो|
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे,
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो|
ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो|
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ,
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो|
मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल,
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो|
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत",
हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कहो|
_________
बीमार को मर्ज़ की दवा देनी चाहिए!
वो पीना चाहता है पिला देनी चाहिए!!
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में! ( बरकतों से = क्रुपा ज्याने वाढेल )
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए!!
ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं!
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए!!
मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब! ( गुलदान= flowerpot )
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए!!
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे!
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए!!
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो!! ( जब्र= जोरजबरदस्ती , ताईद = समर्थन )
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए!!
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग!
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए!!
सच बात , कौन है जो सरे-आम कह सके ?
मैं कह रहा हूँ , मुझको सजा देनी चाहिए !!
सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का !
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए!!
_________
दोस्ती जब किसी से की जाए !
दुश्मनों की भी राए ली जाए !!
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में ! (फ़िज़ाओं = हवाये )
अब कहां जा के सांस ली जाए !!
मेरे माज़ी के ज़ख्म भरने लगे ! (माज़ी = भुतकाल)
आज फिर कोई भूल की जाए !!
बोतलें खोल के तो पी बरसों !
आज दिल खोल के भी पी जाए !!
_________
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे!
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे!!
सलिका जिन को सिखाया था हम ने चलने का! ( सलिका = पध्दत )
वो लोग आज हमे दाये बाये करने लगे !! ( दाये बाये = उजवा डावा <दुर्लक्षित करने > )
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर! ( बीमारियों के सौदागर = डोक्ट्र्र , दवाखाने ई. )
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे!!
लहूलुहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज!
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे!!
ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू!
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे!!
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले! ( झुलस = झळ लागने )
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे!! ( शजर= व्रुक्ष इलतिजाएँ = विनंती )
अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी ( मजलिस = सम्मेलन )
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे!! ( सफ़ेद पोश = पांढरपेशे )
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मेरे खुलुस की गेहराई से नही मिलते ! ( खुलुस = सह्र्युदता )
ये झुटे लोग है सच्चाइ से नही मिलते !!
मुझे सबक दे रहे है वो मोहब्बत का !
जो ईद अप्ने सगे भाई से नही मिलते !!
_____________
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तिरंगे की शान में बहे लहू, बस इतना अरमान है
ReplyDeleteAe Watan tujpe qurban meri yeh jaan hai
Deletebahut badiya kam kiya h dost ye blog bana k
ReplyDeletebAHUT ACHCHA KAAM KIYA HAI
ReplyDeleteमेरा घर आग की लपटों में छुपा है लेकिन,
ReplyDeleteजब मज़ा है तेरे आँगन में उजाले जायें
Rahat Indori is a great poeter
ReplyDeleteHappy New Year 2015 may bring lots of happiness and prosperity in your life, here we have collected several interesting wishes for you so please visit here :)
ReplyDeletefind : best valentine's video's , image's , sms ,, and wish you very happy valentine's day 2015 :) ,,
ReplyDeletehttp://happyvalentinesday2015z.com/
http://happyvalentinesday2015z.com/
ReplyDeleteICC World cup 2015
ReplyDeleteदुआ
ReplyDeleteदर - दर फिरते लोगों को दर दे मौला
बंजारों को भी अपना घर दे मौला
जो औरों की खुशियों में खुश होते हैं
उनका घर तू खुशियों से भर दे मौला
दूर गगन में उड़ना चाहूँ चिड़ियों सा
मुझ को भी वो ताक़त वो पर दे मौला
ज़ुल्मो सितम हो ख़त्म न हो दहशतगर्दी
अम्नो अमां की यूं बारिश कर दे मौला
भूके प्यासे मुफ़लिस और यतीम हैं जो
चश्मे इनायत उन पर भी कर दे मौला
जो करते हैं खून ख़राबा जुल्मो सितम
उन के भी दिल में थोडा डर दे मौला
you can search by mobile no for gazal 9981728122
Or salimraza rewa
kya baat he sir great
ReplyDeletethanks Trilok Dev ji
Delete
ReplyDeleteGAZAL
मेरा मज़हब यही सिखाता है
सारी दुनिया से मेरा नाता है
ज़िन्दगी कम है बाँट ले खुशियाँ
दिल किसी का तू क्यूँ दुखाता है
हर भटकते हुए मुसाफ़िर को
सीधा रस्ता वही दिखाता है
चह चहाते हुए परिन्दों को
कौन दाना यहाँ चुग़ाता है
दुश्मनों के तमाम चालों से
मेरा रहबर मुझे बचाता है
दोस्त उसको ही बस कहा जाए
मुश्किलों में जो काम आता है
दुश्मनों से " रज़ा " बड़ा है वो
रास्ते में जो छोड़ जाता है
salimraza rewa
u r a good shayr !nyc lines
DeleteVery nice sir.
ReplyDeleteVery nice sir.
ReplyDeleteghghghgh
ReplyDeleteहुस्न को लफ्ज मे ढाला तो तय है
ReplyDeleteजर्बी भी गजल होगी,रूखशार भी गजल
ghghghgh
ReplyDeletebhot mehnat kari h bhai! exellent work .
ReplyDeletehttps://amacblog1.blogspot.com/?m=1
Deleteबहुत ही शानदार
ReplyDeletehttps://amacblog1.blogspot.com/?m=1
Deletehttps://amacblog1.blogspot.com/?m=1
ReplyDelete